राजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे राजन् !] (यत्)जैसे (नाके) आकाश में (उपपतन्तम्) उड़ते हुए (सुपर्णम्) सुन्दर पंखवाले [गरुड़आदि] पक्षी को, [वैसे ही] (हिरण्यपक्षम्) तेज ग्रहण करनेवाले, (वरुणस्य) श्रेष्ठगुण के (दूतम्) पहुँचानेवाले, (यमस्य) न्याय के (योनौ) घर में (शकुनम्)शक्तिमान् और (भुरण्युम्) पालन करनेवाले (त्वा) तुझको (हृदा) हृदय से (वेनन्तः)चाहनेवाले पुरुष (अभ्यचक्षत) सब ओर से देखते हैं ॥६६॥
Connotation: - जो राजा महाप्रतापी, श्रेष्ठ गुणी, न्यायकारी और प्रजापालक होता है, मनुष्य उस वेगवान् तीव्रबुद्धिको ऐसी प्रीति से देखते हैं, जैसे आकाश में ऊँचे उड़ते हुए गरुड़ आदि को चावसे देखते हैं ॥६६॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।१२३।५। और सामवेद में−पू० ४।३।८तथा उ० ९।२।१३ ॥