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सं ग॑च्छस्वपि॒तृभिः॒ सं य॒मेने॑ष्टापू॒र्तेन॑ पर॒मे व्योमन्। हि॒त्वाव॒द्यंपुन॒रस्त॒मेहि॒ सं ग॑च्छतां त॒न्वा सु॒वर्चाः॑ ॥

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Pad Path

सम् । गच्छस्व । पितृऽभि: । सम् । यमेन । इष्टापूर्तेन । परमे । विऽओमन् । हित्वा । अवद्यम् । पुन: । अस्तम् । आ । इहि । सम् । गच्छताम् । तन्वा । सुऽवर्चा: ॥५.५८॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:3» Paryayah:0» Mantra:58


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

घर की रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (यमेनसम्) नियम [ब्रह्मचर्य आदि व्रत] के साथ (इष्टापूर्तेन) यज्ञ, वेदाध्ययन तथाअन्नदान आदि पुण्य कर्म से (परमे) सबसे ऊँचे (व्योमन्) विशेष रक्षा पद में [वर्तमान] (पितृभिः) पितरों [पालक महात्माओं] से (सं गच्छस्व) तू मिल। (अवद्यम्)निन्दित कर्म [अज्ञान] को (हित्वा) छोड़कर (पुनः) फिर (अस्तम्) घर (आ इहि) तू आऔर (सुवर्चाः) बड़ा तेजस्वी होकर (तन्वा) उपकार शक्ति के साथ (सं गच्छताम्) आपमिलें ॥५८॥
Connotation: - मनुष्यों को उचित हैकि ब्रह्मचर्य आदि तप के साथ बड़े विद्वान् महाशयों से विद्या प्राप्त करकेगृहाश्रम में प्रवेश कर प्रतापी होवें ॥५८॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१४।८। और इस का चौथा पाद ऊपर आचुका है-अ० १८।२।१०। तथा ऋग्वेदपाठ महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि अन्त्येष्टिप्रकरण में उद्धृत है ॥
Footnote: ५८−(सं गच्छस्व)संगतो भव (पितृभिः) पालकैर्महात्मभिः (सम्) सह (यमेन) नियमेन।ब्रह्मचर्यादिव्रतेन (इष्टापूर्तेन) अ० २।१२।४। यज्ञवेदाध्ययनान्नदानादिकर्मणा (परमे) सर्वोत्कृष्टे (व्योमन्) अ० १।१७।६। वि+अव रक्षणे-मनिन्। विशेषरक्षापदे (हित्वा) त्यक्त्वा (अवद्यम्) निन्द्यम् अज्ञानम् (पुनः) अज्ञानत्यागानन्तरम् (अस्तम्) गृहम् (एहि) आगच्छ (संगच्छताम्) संगतो भवतु भवान् (तन्वा) उपकारशक्त्या (सुवर्चाः) महातेजस्वी ॥