Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (यत्)जो कुछ (ते) तेरा [अङ्ग] (कृष्णः) काले (शकुनः) पक्षी [काक आदि], (पिपीलः)चीउँटा, (सर्पः) सर्प, (उत वा) अथवा (श्वापदः) कुत्ते समान पाँववाले, जङ्गली पशु [व्याघ्र शृगाल आदि] ने (आतुतोद) घायल कर दिया है, (तत्) उस [घायल अङ्ग] को (विश्वात्) सर्वरोगभक्षक (अग्निः) आग (अगदम्) नीरोग (कृणोतु) करे, (च) और (यः)जिस (सोमः) ऐश्वर्य [प्रभाव] ने (ब्राह्मणान्) बड़े विद्वानों में (आविवेश)प्रवेश किया है, [वह भी उसे नीरोग करे] ॥५५॥
Connotation: - यदि विषैला पक्षी, पशु, सर्प, कीट आदि काट खावे, तो मनुष्य थोड़े विषैले के काटे को आग से सेक देंऔर बड़े विषैले के काटे को आग से जलावें तथा और विद्वान् वैद्यों से भी औषधकरावें, यह गृहस्थों को जानना चाहिये ॥५५॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१०।१६।६॥