मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [जिसने] (देवेभ्यः)उत्तम गुणों के लिये (कम्) सुख से (मृत्युम्) मृत्यु [अहङ्कारत्याग] को (अवृणीत)अङ्गीकार किया है, उस ने (प्रजायै) प्रजा के लिये (किम्) क्या (अमृतम्) अमृत [अमरपन मोक्षपद] को (न) नहीं (अवृणीत) अङ्गीकार किया ? (बृहस्पतिः) उस बड़े-बड़ेव्यवहारों के रक्षक (ऋषिः) सन्मार्गदर्शक, (यमः) नियमवाले पुरुष ने (यज्ञम्)पूजनीय व्यवहार को (अतनुत) फैलाया है और (प्रियाम्) हित करनेवाली (तन्वम्) उपकारक्रिया को (आ) सब ओर से (रिरेच) संयुक्त किया है ॥४१॥
Connotation: - जो स्त्री-पुरुषश्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति के लिये अहङ्कार, अर्थात् आपा छोड़ आत्मदान करते हैं, वे ही संसार को मोक्षपद देते और पूजनीय व्यवहारों को फैलाकर अवश्य महान् उपकारकरते हैं ॥४१॥