मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (रुपः) गतिमान् पुरुष (त्रीणि) तीनों [भूत, भविष्यत् और वर्तमान] (पदानि) पदों [अधिकारों] के (अनु)पीछे-पीछे (अरोहत्) प्रसिद्ध हुआ है, और (व्रतेन) व्रत [ब्रह्मचर्य आदि नियम] केसाथ (चतुष्पदीम्) चारों [धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष] में अधिकारवाली वेदवाणी के (अनु) पीछे-पीछे (ऐतत्) चला है। वह (अक्षरेण) व्यापक वा अविनाशी [परमात्मा]के साथ (अर्कम्) पूजनीय विचार को (प्रति) प्रत्यक्ष (मिमीते) करता है, और (ऋतस्य) सत्य धर्म की (नाभौ) नाभि में [सबको] (अभि) सब ओर से (सम्) यथावत् (पुनाति) शुद्ध करता है ॥४०॥
Connotation: - चलते-फिरते उद्योगीस्त्री-पुरुष भूत, भविष्यत् और वर्तमान का विचार करके वेदद्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त होवें और परमात्मा की आज्ञा का पालन करके सब मनुष्यों कोशुभ मार्ग पर चलावें ॥४०॥१−मन्त्र ४० और ४१ कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं−१०।१३।३, ४ ॥२−संहिता के (ऐतत्) पद के स्थान पर पदपाठ में (एतत्) पद विचारणीय है॥