पितरों के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (उग्रः) तेजस्वी पुरुषने (क्षुमति) अन्न [घास आदि] वाले स्थान में (पश्वः) पशुओं के (यूथा इव) यूथोंके समान (देवानाम्) विद्वानों के (जनिम) जन्म [जीवन] को (अन्ति) समीप से (आ) सबप्रकार (अख्यत्) देखा है। (मर्तासः) मनुष्यों ने (चित्) भी (उर्वशीः) बहुत फैलीहुई क्रियाओं को (अकृप्रन्) विचारा है, (चित्) जैसे (अर्यः) वैश्य (उपरस्य)समीपस्थ (आयोः) आयु की (वृधे) बढ़ती के लिये [विचारता है] ॥२३॥
Connotation: - प्रतापी बुद्धिमान्पुरुष विद्वानों के आचरणों को इस प्रकार ध्यान से देखता है, जैसे ग्वाला चरतेहुए पशुओं को इधर-उधर जाने से रोक कर देखता रहता है। और जैसे वैश्य अपने आप कीउन्नति सोचता है, वैसे ही सब मनुष्य उत्तम विद्याओं और क्रियाओं का प्रचार करें॥२३॥