पितरों के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (अग्ने) हे विद्वान् ! (अध) फिर (यथा) जैसे (नः) हमारे (परासः) उत्तम (प्रत्नासः) प्राचीन (पितरः) पितर [रक्षक महात्मा] (ऋतम्) सत्य धर्म को (आशशानाः) अच्छे प्रकार सूक्ष्म करनेवाले [हुए हैं] [वैसे ही] (दीध्यतः) प्रकाशमान, (उक्थशासः) प्रशंसनीय कर्मों कीस्तुति करनेवालों ने (शुचि) पवित्र कर्म को (इत्) ही (अयन्) प्राप्त किया है, और (क्षाम) हानि को (भिन्दन्तः) तोड़ते हुए उन्होंने (अरुणीः) प्राप्तियोग्यक्रियाओं को वैसे ही (अपव्रन्) खोला है ॥२१॥
Connotation: - जिस प्रकार पहिलेविद्वान् लोग पिता आदि महात्माओं का अनुकरण करके विघ्नों को हटा कर उपकारी कामोंका प्रचार करते आये हैं, वैसे ही सब विद्वानों को करना चाहिये ॥२१॥मन्त्र २१-२३कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं−४।२।१६-१८ और यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में भीहै−१९।६९ ॥