Word-Meaning: - (अमृताम्) अमर [नित्यप्रकृति, जगत् सामग्री] को (अप) सुख से (अगूहन्) उन [ईश्वरनियमों] ने गुप्तरक्खा और (मर्त्येभ्यः) मरणधर्मी [मनुष्य आदि प्राणियों] के हित के लिये [उसे] (सवर्णाम्) समान अङ्गीकार करने योग्य (कृत्वा) करके (विवस्वते) प्रकाशमयपरमात्मा [की आज्ञा मानने] के लिये (अदधुः) उन्होंने पुष्ट किया। (उत) और (यत्)जो कुछ [जगत्] (आसीत्) था, (तत्) उस [जगत्] ने (अश्विनौ) व्यापक प्राण और अपानको (अभरत्) धारण किया, (उ) और (सरण्यूः) व्यापक [प्रकृति, जगत्सामग्री] ने (द्वा) दो (मिथुना) जोड़ियाओं [स्त्री-पुरुष] को (अजहात्) त्यागा [उत्पन्न किया]॥३३॥
Connotation: - ईश्वरनियम से प्रकृतिअर्थात् जगत्सामग्री प्रलयसमय में अदृश्य रहती और सृष्टिकाल में सर्वोपकारीहोकर प्रकट होती है, तब यह जगत् प्राण और अपान द्वारा चेष्टा करता है और स्त्री-पुरुष आदि प्राणी उत्पन्न होते हैं ॥३३॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१७।२ ॥