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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
पृथिवी की विद्या का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे पुरुष !] (पृथिव्याः) पृथिवी के (असंबाधे) बाधारहित, (उरौ) विस्तीर्ण (लोके) स्थान में (नि) दृढ़ता से (धीयस्व) तू ठहराया गया हो। (याः) जिन (स्वधाः) आत्मधारणशक्तियों को (जीवन्) जीवते हुए (चकृषे) तूने किया है, (ताः) वे [सब शक्तियाँ] (ते) तेरे लिये (मधुश्चुतः) ज्ञान की बरसानेवाली (सन्तु) होवें ॥२०॥
Connotation: - जो मनुष्य विघ्नों कोहटाकर दृढ़ता से पृथिवी पर श्रेष्ठ पदार्थ खोजते जाते हैं, वे आत्मविश्वासी सदासुख पाते हैं ॥२०॥
Footnote: २०−(असम्बाधे) संबाधारहिते। निर्विघ्ने (पृथिव्याः) भूमेः (उरौ) विस्तृते (लोके) स्थाने (नि) निश्चयेन (धीयस्व) दधातेः कर्मणि यक्। धारितोभव (स्वधाः) स्वधारणशक्तीः (याः) (चकृषे) त्वं कृतवानसि (जीवन्) प्राणान् धारयन्सन् (ताः) शक्तयः (ते) तुभ्यम् (सन्तु) (मधुश्चुतः) श्चुतिर् क्षरणे-क्विप्।ज्ञानस्य क्षारयित्र्यो वर्षयित्र्यः ॥