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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।
Word-Meaning: - (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (ते) तेरे (जनित्रम्) जन्मस्थान को (विद्म) हम जानते हैं, तू (ग्राह्याः) गठिया [रोगविशेष] का (पुत्रः) पुत्र और (यमस्य) मृत्यु का (करणः)करनेवाला (असि) है ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इससे सब लोग दुःखों के कारण अति निद्रा आदि कोखोजकर निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रयलेकर सदा सचेत रहें ॥१-३॥
Footnote: १−इदं सूक्तं किञ्चिद्भेदेन गतं व्याख्यातं च-अ० ६।४६।२। (विद्म) जानीमः (ते) तव (स्वप्न) हे निद्रे।हे आलस्य (जनित्रम्) जन्मस्थानम् (ग्राह्याः) अ० २।९।१। सन्धीनांग्रहणशीलपीडायाः (पुत्रः) पुत्र इवोत्पन्नः (यमस्य) मृत्योः (करणः) करोतेर्ल्यु।कर्ता ॥