परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (एकचक्रम्) एक चक्रवाला और (एकनेमि) एक नेमी [नियम] वाला (सहस्राक्षम्) सहस्रों प्रकार से व्याप्तिवाला [ब्रह्म] (प्र) भली-भाँति (पुरः) आगे और (नि) निश्चय करके (पश्चा) पीछे (वर्तते) वर्तमान है। उसने (अर्धेन) आधे [खण्ड] से (विश्वम्) सब (भुवनम्) अस्तित्व [जगत्] को (जजान) उत्पन्न किया और (यत्) जो (अस्य) इस [ब्रह्म] का (अर्धम्) [दूसरा कारणरूप] आधा है, (तत्) वह (क्व) कहाँ (बभूव) रहा ॥७॥
Connotation: - वह परब्रह्म अपने अटूट नियम से सब जगत् में व्यापकर सब से पहिले और पीछे निरन्तर वर्तमान है। उसने अपने थोड़े से सामर्थ्य से वह बहुत बड़ा ब्रह्माण्ड रचा है और जिस कारण से वह रचता चला जाता है, उसका परिमाण मनुष्य नहीं कर सकता ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आगे है-अ० ११।४।२२ ॥