परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (द्वादश) बारह (प्रधयः) प्रधि [पुट्ठी अर्थात् महीने], (एकम् चक्रम्) एक पहिया [वर्ष], (त्रीणि) तीन (नभ्यानि) नाभि के अङ्ग [ग्रीष्म, वर्षा और शीत] हैं, (कः उ) किसने ही (तत्) इस [मर्म] को (चिकेत) जाना है। (तत्र) उस [पहिये, वर्ष] में (त्रीणि) तीन (शतानि) सौ (च) और (षष्टिः) साठ (शङ्कवः) शङ्क [काँटे] और (खीलाः) खीले [बड़े-छोटे दिन] (आहताः) लगे हुए हैं, (ये) जो (अविचाचलाः) टेढ़े होकर विचल नहीं होते ॥४॥
Connotation: - जैसे परमेश्वर ने अपने-अपने प्रयोजन के लिये वर्ष के महीने, ऋतुएँ और दिन आदि बनाये हैं, वैसे ही मनुष्य यान, विमान नौका आदि में कलायन्त्र आदि लगाकर जाना-आना आदि व्यवहार किया करें ॥४॥ यह मन्त्र भेद से ऋग्वेद में है−म० १। सू० १६४। म० ४८, और निरुक्त ४।२७। में भी व्याख्यात है ॥