परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (येभिः) जिन [संयोग-वियोग आदि दिव्य गुणों] करके (इषितः) प्रेरा गया (वातः) वायु (प्रवाति) चलता रहता है (ये) जो दिव्य गुण (सध्रीचीः) आपस में मिली हुई, (पञ्च) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश तत्त्वों से सम्बन्धवाली] (दिशः) दिशाओं का (ददन्ते) दान करते हैं। (ये) जिन (देवाः) देवों [संयोग, वियोग आदि दिव्यगुणों] ने (आहुतिम्) आहुति [दान क्रिया, उपकार] को (अत्यमन्यन्त) अतिशय करके माना [स्वीकार किया] था, (ते) वे (अपाम्) प्रजाओं के (नेतारः) नेता [संचालक दिव्य गुण] (कतमे) कौन से (आसन्) थे ॥३५॥
Connotation: - विवेकी को विचारना चाहिये कि किन गुणों से वायु ऊपर नीचे चलता है, सब दिशाओं में पृथिवी आदि तत्त्व कैसे स्थित हैं, किस गुण से क्या उपकार होता है, जिससे यह पृथिवी ठहरी है ॥३५॥