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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - [जो विद्वान्] (अन्ति) समीप में (सन्तम्) वर्तमान [देव परमात्मा] को (न) नहीं (जहाति) छोड़ता है और (अन्ति) समीप में (सन्तम्) वर्तमान (न) जैसे [उसको] (पश्यति) देखता है। (देवस्य) देव [दिव्यगुणवाले परमात्मा] की (काव्यम्) बुद्धिमत्ता (पश्य) देख, वह [विद्वान्] (न ममार) न तो मरा और (न जीर्यति) न जीर्ण [निर्बल] होता है ॥३२॥
Connotation: - जो विद्वान् दृढ़ चित्त से परमात्मा को प्रत्यक्ष जानता है, वह कभी दुःखी नहीं होता, उसका आत्मबल सदा बढ़ता रहता है, यह ईश्वर नियम है ॥३२॥
Footnote: ३२−(अन्ति) अन्तिके। समीपे (सन्तम्) वर्तमानम् (न) निषेधे (जहाति) त्यजति यो विद्वान् (अन्ति) (सन्तम्) (न) इव (पश्यति) अवलोकते (देवस्य) परमेश्वरस्य (पश्य) (काव्यम्) कवि-ष्यञ्। कविकर्म। मेधावित्वम् (न) निषेधे (ममार) मृत्युं प्राप (न) निषेधे (जायति) जॄ वयोहानौ। जीर्णो निर्बलो भवति ॥