Go To Mantra

अन्ति॒ सन्तं॒ न ज॑हा॒त्यन्ति॒ सन्तं॒ न प॑श्यति। दे॒वस्य॑ पश्य॒ काव्यं॒ न म॑मार॒ न जी॑र्यति ॥

Mantra Audio
Pad Path

अन्ति । सन्तम् । न । जहाति । अन्ति । सन्तम् । न । पश्यति । देवस्य । पश्य । काव्यम् । न । ममार । न । जीर्यति ॥८.३२॥

Atharvaveda » Kand:10» Sukta:8» Paryayah:0» Mantra:32


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

Word-Meaning: - [जो विद्वान्] (अन्ति) समीप में (सन्तम्) वर्तमान [देव परमात्मा] को (न) नहीं (जहाति) छोड़ता है और (अन्ति) समीप में (सन्तम्) वर्तमान (न) जैसे [उसको] (पश्यति) देखता है। (देवस्य) देव [दिव्यगुणवाले परमात्मा] की (काव्यम्) बुद्धिमत्ता (पश्य) देख, वह [विद्वान्] (न ममार) न तो मरा और (न जीर्यति) न जीर्ण [निर्बल] होता है ॥३२॥
Connotation: - जो विद्वान् दृढ़ चित्त से परमात्मा को प्रत्यक्ष जानता है, वह कभी दुःखी नहीं होता, उसका आत्मबल सदा बढ़ता रहता है, यह ईश्वर नियम है ॥३२॥
Footnote: ३२−(अन्ति) अन्तिके। समीपे (सन्तम्) वर्तमानम् (न) निषेधे (जहाति) त्यजति यो विद्वान् (अन्ति) (सन्तम्) (न) इव (पश्यति) अवलोकते (देवस्य) परमेश्वरस्य (पश्य) (काव्यम्) कवि-ष्यञ्। कविकर्म। मेधावित्वम् (न) निषेधे (ममार) मृत्युं प्राप (न) निषेधे (जायति) जॄ वयोहानौ। जीर्णो निर्बलो भवति ॥