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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (अविः) रक्षक (वै) ही (नाम) नाम (देवता) देवता [दिव्य शक्ति, परमात्मा] (ऋतेन) सत्यज्ञान से (परिवृता) घिरा हुआ (आस्ते) स्थित है। (तस्याः) उस [देवता] के (रूपेण) रूप [स्वभाव] से (इमे) यह (हरिताः) हरे (वृक्षाः) वृक्ष (हरितस्रजः) दाख [समान फलों] की मालावाले हैं ॥३१॥
Connotation: - ज्ञानस्वरूप परमात्मा सर्वरक्षक प्रसिद्ध है, उसी की दया से यह हरे-हरे वृक्ष आदि प्राणियों को फल आदि से सुखदायक होते हैं ॥३१॥
Footnote: ३१−(अविः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अव रक्षणादिषु-इन्। रक्षिका (वै) एव (नाम) संज्ञा (देवता) दिव्यगुणा शक्तिः परमेश्वरः (ऋतेन) सत्यज्ञानेन (आस्ते) तिष्ठति (परिवृता) आच्छादिता (तस्याः) देवतायाः (रूपेण) स्वभावेन (इमे) दृश्यमानाः (वृक्षाः) तरवः (हरिताः) हरितवर्णाः (हरितस्रजः) हरिता कपिलद्राक्षा-इति शब्दकल्पद्रुमः, हरित एव हरिताः। द्राक्षावत् फलानां स्रजो मालाः सन्ति येषां ते ॥