परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (तिस्रः) तीनों [ऊँची, नीची और मध्यम] (ह) ही (प्रजाः) प्रजा [कार्यरूप उत्पन्न पदार्थ] (अत्यायम्) नित्य गमन-आगमन को (आयन्) प्राप्त हुए, (अन्याः) दूसरे [कारणरूप पदार्थ] (अर्कम् अभि) पूजनीय [परमात्मा] के आस-पास (नि अविशन्त) ठहरे। (रजसः) संसार का (बृहन् ह) बड़ा ही (विमानः) विविध प्रकार नापनेवाला [वा विमानरूप आधार, परमेश्वर] (तस्थौ) खड़ा हुआ और (हरितः) दुःख हरनेवाले [हरि, परमात्मा] ने (हरिणीः) दिशाओं में (आ विवेश) सब ओर प्रवेश किया ॥३॥
Connotation: - परमेश्वर के नियम से पदार्थ कार्यदशा प्राप्त करके आगमन-गमन करते हैं, और दूसरे नित्य कारणरूप पदार्थ परमात्मा के सामर्थ्य में रहते हैं। इन सब पदार्थों की इयत्ता वही परमात्मा सब दिशाओं में व्याप कर जानता है ॥३॥