परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
Word-Meaning: - (प्रजापतिः) प्रजा [सब जगत्] का पालनेवाला (गर्भे) गर्भ [गर्भरूप आत्मा] के (अन्तः) भीतर (चरति) विचरता है और (अदृश्यमानः) न दीखता हुआ वह (बहुधा) बहुत प्रकार (वि जायते) विशेष करके प्रकट होता है। उसने (अर्धेन) आधे खण्ड से (विश्वम्) सब (भुवनम्) अस्तित्व [जगत्] को (जजान) उत्पन्न किया, और (यत्) जो (अस्य) इस [ब्रह्म] का (अर्धम्) [दूसरा कारणरूप] आधा है, (सः) वह (कतमः) कौन सा (केतुः) चिह्न है ॥१३॥
Connotation: - परमात्मा अज्ञानियों को नहीं दीखता, उसको विवेकी जन सूक्ष्मदृष्टि से सब के भीतर व्यापक पाते हैं। उसी ईश्वर की सामर्थ्य से यह जगत् उत्पन्न हुआ है और उसी की शक्ति में अनन्त कारणरूप पदार्थ वर्तमान हैं ॥१३॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध यजुर्वेद में है-अ० ३१। म० १९। और तीसरा पाद ऊपर मन्त्र ७ में आ चुका है ॥