ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
Word-Meaning: - (एके) अकेली-अकेली दो (युवती) युवा स्त्रियाँ [वा संयोग-वियोग स्वभाववाली] (विरूपे) विरुद्ध स्वरूपवाली [दिन और रात्रि की वेलाएँ] (अभ्याक्रामम्) परस्पर चढ़ाई करके (षण्मयूखम्) छह [पूर्वादि चार और ऊपर नीचे की दो दिशाओं] में परिमाण वा गतिवाले (तन्त्रम्) तन्त्र [जाल अर्थात् काल] को (वयतः) बुनती हैं। (अन्या) कोई एक (तन्तून्) तन्तुओं [तागों अर्थात् प्रकाश वा अन्धकार] को (प्र तिरते) फैलाती है, (अन्या) दूसरी [उन्हें] (धत्ते) समेट धरती है। वे दोनों [उन्हें] (न अप वृञ्जाते) न छोड़ बैठती हैं (न) न (अन्तम्) अन्त तक (गमातः) पहुँचती हैं ॥४२॥
Connotation: - जैसे दिन और राति की वेलाएँ परस्पर विरुद्ध अर्थात् श्वेत और काली होकर भी प्रीतिपूर्वक परमेश्वर की आज्ञा में चलकर संसार में परिगणनीय काल बनाती हैं, वैसे ही सब मनुष्य परस्पर मित्र होकर ईश्वर की आज्ञापालन में सदा तत्पर रहें ॥४२॥