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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
Word-Meaning: - (तस्य) उस [परमेश्वर] से (तमः) अन्धकार (अप हतम्) सर्वथा नष्ट है, (सः) वह (पाप्मना) पाप से (व्यावृत्तः) विमुक्त है। (तस्मिन् प्रजापतौ) उस प्रजापालक [परमेश्वर] में (सर्वाणि) सब (ज्योतींषि) ज्योति हैं, (यानि) जो (त्रीणि) तीन [संयोग, वियोग और स्थिति रूप, यद्वा सत्त्व रज और तम रूप हैं] ॥४०॥
Connotation: - प्रकाशस्वरूप, निष्पाप, परमात्मा की महिमा से परमाणुओं के संयोग-वियोग और स्थिति द्वारा, यद्वा, सत्त्व, रज और तम तीनों गुणों द्वारा यह संसार स्थित है ॥४०॥
Footnote: ४०−(अप हतम्) विनष्टम् (तस्य) तस्मात् परमेश्वरात् (तमः) अन्धकारः (व्यावृत्तः) निवृत्तः। विमुक्तः (पाप्मना) पापेन (सर्वाणि) (तस्मिन्) (ज्योतींषि) परमाणूनां संयोगवियोगस्थितिरूपाणि, सत्त्वरजस्तमोगुणरूपाणि वा तेजांसि (यानि) (त्रीणि) त्रिसंख्याकानि (प्रजापतौ) प्रजापालके जगदीश्वरे ॥