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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
Word-Meaning: - (यस्य) जिसके (अङ्गे) अङ्ग में (सर्वे) सब (त्रयस्त्रिंशत्) तेंतीस (देवाः) देवता [दिव्य पदार्थ] (समाहिताः) मिलकर स्थापित हैं। (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥१३॥
Connotation: - परमेश्वर के सामर्थ्य से ही वसु आदि पदार्थ संसार का धारण करते हैं। तेंतीस देवता यह हैं−८ वसु अर्थात् अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्यौः वा प्रकाश, चन्द्रमा और नक्षत्र, ११ रुद्र अर्थात् प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनञ्जय यह दश प्राण और ग्यारहवाँ जीवात्मा, १२ आदित्य अर्थात् महीने, १ इन्द्र अर्थात् बिजुली, प्रजापति अर्थात् यज्ञ−महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ ६६-६८ ॥१३॥
Footnote: १३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) वस्वादयः−ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठानि ६८-६८ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (अङ्गे) (सर्वे) समाहिताः सम्यक् स्थापिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥