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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
Word-Meaning: - (हिरण्यस्रक्) कामनायोग्य [तेजों] का उत्पन्न करनेवाला (अतिथिः) सदा मिलने योग्य (अयम्) यह (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (श्रद्धाम्) श्रद्धा [सत्यधारण], (यज्ञम्) श्रेष्ठ कर्म, (महः) बड़प्पन (दधत्) देता हुआ (नः) हमारे (गृहे) घर में (वसतु) वसे ॥४॥
Connotation: - मनुष्य वेदों के नित्य विचार से श्रद्धावान्, यशस्वी और परोपकारी होवें ॥४॥
Footnote: ४−(हिरण्यस्रक्) अ० १०।९।२। हर्य गतिकान्त्योः-कन्यन्, हिरादेशः। ऋत्विग्दधृक्स्रग्०। पा० ३।२।५९। सृज उत्पादने-क्विन्, अमागमः। कमनीयानां तेजसां स्रष्टा (अयम्) प्रसिद्धः (मणिः) म० २। प्रशंसनीयो वेदबोधः (श्रद्धाम्) सत्यधारणम्। विश्वासम् (यज्ञम्) श्रेष्ठव्यवहारम् (महः) महत्त्वम् (दधत्) प्रयच्छन् (गृहे) (वसतु) तिष्ठतु (नः) अस्माकम् (अतिथिः) अ० ७।२१।१। अत सातत्यगमने-इथिन्। अतनशीलः। नित्यं प्रापणीयः ॥