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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
Word-Meaning: - (यज्ञवर्धन) हे श्रेष्ठ व्यवहार बढ़ानेवाले (मणे) मणि ! [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (यस्मै) जिस [पुरुष] के लिये (शिवम् त्वा) तुझ मङ्गलकारी को (प्रत्यमुचम्) मैंने स्वीकार किया है, (शतदक्षिण) हे सैकड़ों वृद्धिवाले (मणे) मणि ! [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (त्वम्) तू (तम्) उस [पुरुष] को (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपद के लिये (जिन्वतात्) तृप्त कर ॥३४॥
Connotation: - मनुष्य वेदज्ञान से अनेक प्रकार वृद्धि करके योग्यतापूर्वक श्रेष्ठ पद प्राप्त करे ॥३४॥
Footnote: ३४−(यस्मै) पुरुषहिताय (त्वा) (यज्ञवर्धन) हे श्रेष्ठव्यवहारवर्धक (मणे) (प्रत्यमुचम्) अहं स्वीकृतवान् (शिवम्) (मङ्गलकारकम्) (तम्) पुरुषम् (त्वम्) (शतदक्षिण) बहुप्रकारवृद्धियुक्त (मणे) (श्रैष्ठ्याय) श्रेष्ठपदाय (जिन्वतात्) तर्पय ॥