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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
शत्रुओं के नाश का उपदेश।
Word-Meaning: - (यम्) जिस [शत्रु] को (वयम्) हम (मृगयामहे) ढूँढ़ते हैं, (तम्) उसको (वधैः) वज्रों से (स्तृणवामहै) हम विनाशें। (परमेष्ठिनः) सब से ऊँचे पदवाले [राजा] के (व्यात्ते) खुले मुख [वश] में (ब्रह्मणा) ब्रह्मज्ञान से (तम्) उसको (आ=आनीय) लाकर (अपीपदाम) हमने गिरा दिया है ॥४२॥
Connotation: - सब शूरवीर शुभचिन्तक मनुष्य दुष्टों को पकड़ कर राजा के वशीभूत करें ॥४२॥
Footnote: ४२−(यम्) शत्रुम् (वयम्) राजप्रजागणाः (मृगयामहे) अन्विच्छामः (तम्) (वधैः) वज्रैः (स्तृणवामहै) स्तृणातिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। विनाशयाम। (व्यात्ते) प्रसारिते मुखे। वशे (परमेष्ठिनः) अत्युच्यपदस्थितस्य राज्ञः (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (आ) आनीय (अपीपदाम) पातयतेर्लुङ्, तस्य दः। वयं पातितवन्तः (तम्) शत्रुम् ॥