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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे ओषधि !] (अङ्गादङ्गात्) अङ्ग-अङ्ग से [विष को] (प्र च्यवय) सरका दे और (हृदयम्) हृदय को [उस से] (परि वर्जय) त्याग करा दे। (अध) फिर (विषस्य) विष का (यत् तेजः) जो तेज [प्रचण्डता] है, (तत्) वह (ते) तेरे लिये (अवाचीनम्) नीचे (एतु) जावे ॥२५॥
Connotation: - मनुष्य सब रोगों को ओषधि द्वारा शान्त करके प्रसन्न रहें ॥२५॥
Footnote: २५−(अङ्गादङ्गात्) (प्र च्यवय) बहिर्गमय (हृदयम्) (परि) सर्वतः (वर्जय) रोधय (अध) अथ (विषस्य) (यत्) (तेजः) तीक्ष्णता (अवाचीनम्) अधोमुखं गतम् (तत्) (एतु) गच्छतु (ते) तुभ्यम् ॥