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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
Word-Meaning: - (ओषधीनाम्) ओषधियों में से (उर्वरीः इव) बड़ों को मिलने योग्य [ओषधियों] को (साधुया) योग्यता से (अहम्) मैं (वृणे) अङ्गीकार करता हूँ। और (अर्वतीः इव) बड़ी बुद्धिमती [स्त्रियों] के समान (नयामि) मैं लाता हूँ, (अहे) हे महाहिंसक [साँप !] (ते विषम्) तेरा विष (निरैतु) निकल जावे ॥२१॥
Connotation: - वैद्य लोग रोगनिवृत्ति के लिये उत्तम ओषधियों को ऐसे आदर से ग्रहण करें, जैसे विद्वान् गुणवती बुद्धिमती स्त्रियों का मान करते हैं ॥२१॥
Footnote: २१−(ओषधीनाम्) (अहम्) (वृणे) अङ्गीकरोमि (उर्वरीः) उरु+ऋ गतिप्रापणयोः-अच्, ङीप्। उरुभिर्महद्भिः प्रापणीया ओषधीः (इव) पादपूरणः (साधुया) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्याजादेशः। साधुना धर्मेण सह (नयामि) प्रापयामि (अर्वतीः) अ० ६।९२।२। ऋ गतिप्रापणयोः-वनिप्। अर्वणस्त्रसावनञः। पा० ६।४।१२७। इति तृ, उगित्वाद् ङीप् बुद्धिमतीः स्त्रीः। अर्वतीः प्रशस्तबुद्धिमत्यः कन्याः-दयानन्दभाष्ये, ऋ० १, ३ (इव) यथा (अहे) हे सर्प (निरैतु) बहिरागच्छतु (ते) तव ॥