Go To Mantra

यदि॒ स्थ तम॒सावृ॑ता॒ जाले॑न॒भिहि॑ता इव। सर्वाः॑ सं॒लुप्ये॒तः कृ॒त्याः पुनः॑ क॒र्त्रे प्र हि॑ण्मसि ॥

Mantra Audio
Pad Path

यदि । स्थ । तमसा । आऽवृता । जालेन । अभिहिता:ऽइव सर्वा: । सम्ऽलुप्य । इत: । कृत्या: । पुन: । कर्त्रे । प्र । हिण्मसि ॥१.३०॥

Atharvaveda » Kand:10» Sukta:1» Paryayah:0» Mantra:30


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

Word-Meaning: - (यदि) जो तुम (तमसा) अन्धकार से (आवृता) ढक लेनेवाले (जालेन) जाल से (अभिहिताः इव) बन्धी हुई के समान (स्थ) हो। (इतः) यहाँ से (सर्वाः) सब (कृत्याः) हिंसा क्रियाओं को (संलुप्य) काट डालकर (पुनः) फिर (कर्त्रे) बनानेवाले के पास (प्र हिण्मसि) हम भेजे देते हैं ॥३०॥
Connotation: - जो छली मनुष्य दीन अज्ञानियों को फाँसकर उनसे अपराध करावें, राजा खोज करके उन बहकानेवालों को उचित दण्ड देवे ॥३०॥
Footnote: ३०−(यदि, स्थ) (तमसा) अन्धकारेण (आवृता) वृणोतेः-क्विप् तुक् च। आवरकेण (जालेन) पाशेन (अभिहिताः) बद्धाः (इव) (सर्वाः) (संलुप्य) सम्यक् छित्वा (कृत्याः) दोषक्रियाः (इतः) अस्मात् स्थानात् (पुनः) पश्चात् (कर्त्रे) रचयित्रे पुरुषाय (प्र हिण्मसि) प्रेरयामः ॥