अ॒भ्यक्ताक्ता॒ स्व॑रंकृता॒ सर्वं॒ भर॑न्ती दुरि॒तं परे॑हि। जा॑नीहि कृत्ये क॒र्तारं॑ दुहि॒तेव॑ पि॒तरं॒ स्वम् ॥
Pad Path
अभिऽअक्ता । आऽअक्ता । सुऽअरंकृता । सर्वम् । भरन्ती । दु:ऽइतम् । परा । इहि । जानीहि । कृत्ये । कर्तारम् । दुहिताऽइव । पितरम् । स्वम् ॥१.२५॥
Atharvaveda » Kand:10» Sukta:1» Paryayah:0» Mantra:25
Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
Word-Meaning: - (अभ्यक्ता) मली गयी, (आक्ता) चिकनी की गयी, (स्वरङ्कृता) भले प्रकार सजाई गयी, (सर्वम्) प्रत्येक (दुरितम्) सङ्कट को (भरन्ती) धारण करती हुई तू (परा इहि) चली जा। (कृत्ये) हे हिंसा ! तू (कर्तारम्) अपने बनानेवाले को (जानीहि) जान, (इव) जैसे (दुहिता) पुत्री (स्वम् पितरम्) अपने पिता को [जानती है] ॥२५॥
Connotation: - जो शत्रु लोग छल करके दुःख देनेवाली क्रिया को सुखदायी दिखावें, विद्वान् उस भेद को जानकर दुष्टों को दण्ड देवें ॥२५॥
Footnote: २५−(अभ्यक्ता) अञ्जू-क्त। अभितो मर्दिता (आक्ता) आङ् अञ्जू-क्त। समन्तात् स्निग्धा (स्वरङ्कृता) सुभूषिता (सर्वम्) (भरन्ती) धरन्ती (दुरितम्) कष्टम् (परेहि) (जानीहि) (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (कर्तारम्) रचयितारम् (दुहिता इव) पुत्री यथा (पितरम्, स्वम्) ॥