राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (याम् याम्) जिस-जिस (कृत्याम्) हिंसा क्रिया को (वा) अथवा (वलगम्) गुप्त कर्म को (ते) तेरे (बर्हिषि) जल में, (श्मशाने) मरघट में [अथवा] (क्षेत्रे) खेत में (धीरतराः) धीरों के दबानेवालों ने (निचख्नुः) दबा दिया है। (वा) अथवा (गार्हपत्ये) गृहपतियों करके संयुक्त (अग्नौ) अग्नि में (पाकम्) परिपक्व स्वभाववाले, (सन्तम्) सन्त [सदाचारी] और (अनागसम्) निर्दोषी (त्वा) तेरे (अभिचेरुः) उन्होंने विरुद्ध आचरण किया है ॥१८॥ [उस] (अनुबुद्धम्) ताक लगाये गये, (उपाहृतम्) प्रयोग किये गये, (निखातम्) दबाये गये [सुरंग, गढ़े आदि में छिपाये गये] (वैरम्) वैररूप (त्सारि) टेढ़े (कर्त्रम्) कटार को (अनु अविदाम्) हमने ढूँढ़ लिया है। (तत्) वह (एतु) चला जावे, (यतः) जहाँ से (आभृतम्) लाया गया है, (तत्र) वहाँ पर (अश्वः इव) घोड़े के समान (वि वर्तताम्) लोट जावे, (कृत्याकृतः) हिंसा करनेवाले की (प्रजाम्) प्रजा [पुत्र, पौत्र, भृत्य आदि] को (हन्तु) मारे ॥१९॥
Connotation: - जो शत्रु लोग जल आदि के उपयोगी स्थान में प्रकट वा गुप्त खाई, सुरंग आदि बनाकर हानिकारक क्रिया करें, चतुर सेनापति उन का खोज लगाकर उनको वैसी ही क्रियाओं से विध्वंस करे ॥१८,१९॥ इन मन्त्रों का मिलान करो-अथर्व० ५।३१।८, ९ ॥