पुरुषार्थ और आनन्द के लिये उपदेश।
Word-Meaning: - [हे परमेश्वर !] (अस्रामः) श्रमरहित मैं (त्वा) तुझको (हविषा) भक्ति से (यजामि) पूजता हूँ, (अश्लोणः) लंगड़ा न होता हुआ मैं (त्वा) तुझको (घृतेन) [ज्ञान के] प्रकाश से [अथवा घृत से] (जुहोमि) स्वीकार करता हूँ। (यः) जो (आशानाम्) सब दिशाओं में (आशापालः) आशाओं को पालन करनेवाला, (तुरीयः) बड़ा वेगवान् परमेश्वर [अथवा, चौथा मोक्ष] (देवः) प्रकाशमय है, (सः) वह (नः) हमारे लिये (इह) यहाँ पर (सुभूतम्) उत्तम ऐश्वर्य (आ+वक्षत्) पहुँचावे ॥३॥
Connotation: - जो मनुष्य निरालस्य होकर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं अथवा जो घृत से अग्नि के समान प्रतापी होते हैं, वे शीघ्र ही जगदीश्वर का दर्शन करके [अथवा धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि से पाये हुए चौथे मोक्ष के लाभ से] महासमर्थ हो जाते हैं ॥३॥ सायणभाष्य में (अस्रामः) के स्थान में [अश्रामः] और (अश्लोणः) के स्थान में [अश्रोणः] हैं, वे अधिक शुद्ध जान पड़ते हैं ॥