Word-Meaning: - (देवाः) हे विजयी देवताओ ! और (ये) जो (वः) तुम्हारे (पितरः) पितृगण (च) और (ये) जो (पुत्राः) पुत्रगण हैं, वह तुम सब (सचेतसः) सावधान हो कर (मे) मेरे (इदम्) इस (उक्तम्) वचन को (शृणुत) सुनो। (सर्वेभ्यः वः) तुम सबको मैं (एतम्) इसे [अपने को] (परि ददामि) सौंपता हूँ (एनम्) इस पुरुष के लिये [मेरे लिये] (स्वस्ति) कल्याण और मङ्गल (जरसे) स्तुति के अर्थ (वहाथ) तुम पहुँचाओ ॥२॥
Connotation: - जो बुद्धिमान् मनुष्य शास्त्रवित् विजयशील वृद्ध, युवा और ब्रह्मचारियों की सेवा में आत्मसमर्पण करता है, वह पुरुष उन महात्माओं के सत्सङ्ग, उपदेश और सत्कर्मों से लाभ उठाकर संसार में अपनी स्तुति फैलाता है ॥२॥ टिप्पणी−(जरसे) शब्द का अर्थस्तुति के लिये निघण्टु ३।१४। निरु० १०।८। और सायणभाष्य ऋग्वेद १।२।२। के प्रमाण से किया है। यहाँ पर सायणभाष्य मेंजरायै, जराप्राप्तिपर्यन्तम्। बुढ़ापे के लिये, बुढ़ापे के आने तक जो अर्थ है, वह असंगत है, वेद में जीवन को स्वस्थ और स्तुतियोग्य रखने का उपदेश है। देखो−अथर्ववेद, का० ६ सू० १२० म० ३ ॥ यत्रा॑ सु॒हार्दः॑ सु॒कृतो॒ मद॑न्ति वि॒हाय॒ रोगं॑ त॒न्वः स्वायाः॑। अश्लो॑णा॒ अङ्गैरह्रुताः स्व॒र्गे तत्र॑ पश्येम पितरौ च पुत्रान् ॥ जहाँ पर पुण्यात्मा मित्र अपने शरीर का रोग छोड़ कर आनन्द भोगते हैं, वहाँ पर स्वर्ग में बिना लंगड़े हुए और अङ्गों से बिना टेढ़े हुए हम माता-पिता और पुत्रों को देखते रहें। और देखो यजुर्वेद २५।२१। तथा ऋग्वेद १।८९।८। भ॒द्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भ॒द्रं प॑श्येमा॒क्षभि॑र्यजत्राः। स्थि॒रैरङ्गै॑स्तुष्टुवास॑स्त॒नूभि॒र्व्य॑शेमहि दे॒वहितं यदायुः ॥ हे विद्वान् जनो ! कानों से हम शुभ सुनते रहें, हे पूज्य महात्माओ ! आँखों से हम शुभ देखते रहें। दृढ़ अङ्गों और शरीरों से स्तुति करते हुए हम लोग वह जीवन पावें, जो विद्वानों का हितकारक है ॥