Word-Meaning: - (विश्वे) सब (देवाः) विद्वानों ने (याम् त्वा) जिस तुझ परमेश्वर को (असनाय) नाश के लिये (धृष्णुम्) बहुत दृढ़ (इषुम्) शक्ति अर्थात् बरछी (कृण्वानाः) बनाकर (असृजन्त) माना है। (सा) सो तू (विदथे) यज्ञ में (गृणाना) उपदेश करती हुयी (नः) हमको (मृड) सुख दे, (देवि) हे देवी [बरछी] (तस्यै ते) उस तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥४॥
Connotation: - विद्वान् लोग परमेश्वर के क्रोध को सब संसार के दोषों के नाश के लिये बरछीरूप समझ कर सदा सुधार और उपकार करते हैं, तब संसार में प्रतिष्ठा और मान पाकर सुख भोगते और परमात्मा के क्रोध का धन्यवाद देते हैं ॥४॥ यजुर्वेद में लिखा है−यजु० १६।३ ॥ यामिषुं॑ गिरिशन्त॒ हस्ते॑ बि॒भर्ष्यस्त॑वे। शि॒वां गि॑रित्र॒ तां कु॑रु॒ मा हि॑सीः॒ पुरु॑षं जग॑त् ॥१॥ हे वेद द्वारा शान्ति फैलानेवाले ! जिस बरछी वा बाण को चलाने के लिये अपने हाथों में तू धारण करता है, हे वेदद्वारा रक्षा करनेवाले ! उसको मङ्गलकारी कर, पुरुषार्थी लोगों को तू मत मार ॥