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उप॑ ह्वये सु॒दुघां॑ धे॒नुमे॒तां सु॒हस्तो॑ गो॒धुगु॒त दो॑हदेनाम्। श्रेष्ठं॑ स॒वं स॑वि॒ता सा॑विषन्नो॒ऽभीद्धो॑ घ॒र्मस्तदु॒ षु प्र वो॑चत् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप । ह्वये । सुऽदुघाम् । धेनुम् । एताम् । सुऽहस्त: । गोऽधुक् । उत । दोहत् । एनाम् । श्रेष्ठम् । सवम् । सविता । साविषत् । न: । अभिऽइध्द: । घर्म: । तत् । ऊं इति । सु । प्र । वोचत् ॥१५.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:9» सूक्त:10» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

जीवात्मा और परमात्मा के लक्षणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदुघाम्) अच्छे प्रकार कामनाएँ पूरी करनेवाली (एताम्) इस (धेनुम्) विद्या को (उप ह्वये) मैं स्वीकार करता हूँ, (उत) वैसे ही (सुहस्तः) हस्तक्रिया में चतुर (गोधुक्) विद्या को दोहनेवाला [विद्वान्] (एनाम्) इस [विद्या] को (दोहत्) दुहे। (सविता) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर (श्रेष्ठम्) श्रेष्ठ (सवम्) ऐश्वर्य को (नः) हमारे लिये (साविषत्) उत्पन्न करे। (अभीद्धः) सब ओर प्रकाशमान (घर्मः) प्रतापी परमेश्वर ने (तत् उ) उस सब को (सु) अच्छे प्रकार (प्रवोचत्) उपदेश किया है ॥४॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य कल्याणी वेदवाणी का पठन-पाठन करके ऐश्वर्य प्राप्त करें। जिस प्रकार परमेश्वर ने उसका उपदेश किया है ॥४॥ यह मन्त्र आ चुका है-अ० ७।७३।३। (वोचत्) के स्थान पर [वोचम्] है, ऋग्वेद १।१६४।२६। तथा निरुक्त ११।४३ ॥
टिप्पणी: ४-अयं मन्त्रः पूर्वं व्याख्यातः-अ० ७।७३।३। तत्रैव द्रष्टव्यः ॥