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यज्ञ॑ य॒ज्ञं ग॑च्छ य॒ज्ञप॑तिं गच्छ। स्वां योनिं॑ गच्छ॒ स्वाहा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यज्ञ । यज्ञम् । गच्छ। यज्ञऽपतिम् । गच्छ। स्वाम् । योनिम् । गच्छ । स्वाहा ॥१०२.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:7» सूक्त:97» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मनुष्य धर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यज्ञ) हे पूजनीय पुरुष ! (यज्ञम्) पूजनीय व्यवहार को (गच्छ) प्राप्त हो, (यज्ञपतिम्) पूजनीय व्यवहार के पालनेवाले को (गच्छ) प्राप्त हो। और (स्वाहा) सुन्दर वाणी [वेदवाणी] के साथ (स्वाम्) अपने (योनिम्) स्वभाव को (गच्छ) प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य उत्तम व्यवहार और उत्तम मनुष्यों के साथ से अपने मनुष्य धर्म का कर्त्तव्य करता रहे ॥५॥ यह मन्त्र यजुर्वेद में है−८।२२ ॥
टिप्पणी: ५−(यज्ञ) पूजनीय पुरुष (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (यज्ञपतिम्) पूजनीयव्यवहारस्य पालकम् (गच्छ) (स्वाम्) स्वकीयाम् (योनिम्) प्रकृतिम्। स्वभावम् (गच्छ) (स्वाहा) अ० २।१६।१। सुवाण्या। वेदवाचा ॥