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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शूरों के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रेण) प्रतापी सेनापति के साथ और (मन्युना) क्रोध के साथ (वृत्राणि) [घेरनेवाले] सेनादलों को (अप्रति) बेरोक (घ्नन्तः) मारते हुए (वयम्) हम लोग (पृतन्यतः) सेना चढ़ानेवालों को (अभि स्याम्) हरा देवें ॥१॥
भावार्थभाषाः - शूर सेनानी के साथ समस्त सेना शूर होकर शत्रुओं को मारे ॥१॥
टिप्पणी: १−(इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता सेनापतिना (मन्युना) क्रोधेन (वयम्) सैनिकाः (अभि स्याम) अभिभवेम (पृतन्यतः) अ० १।२१।२। पृतनां सेनामात्मन इच्छतः शत्रून् (घ्नन्तः) मारयन्तः (वृत्राणि) आवरकाणि सेनादलानि (अप्रति) प्रतिपक्षम् ॥