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अन्व॒ग्निरु॒षसा॒मग्र॑मख्य॒दन्वहा॑नि प्रथ॒मो जा॒तवे॑दाः। अनु॒ सूर्य॑ उ॒षसो॒ अनु॑ र॒श्मीननु॒ द्यावा॑पृथि॒वी आ वि॑वेश ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु । अग्नि: । उषसाम् । अग्रम् । अख्यत् । अनु । अहानि । प्रथम: । जातऽवेदा: । अनु । सूर्य: । उषस: । अनु । रश्मीन् । अनु । द्यावापृथिवी इति । आ । विवेश ॥८७.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:7» सूक्त:82» पर्यायः:0» मन्त्र:4


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

वेद के विज्ञान का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर ने (उषसाम्) उषाओं के (अग्रम्) विकास को (अनु) निरन्तर, [उसी] (प्रथमः) सब से पहिले वर्तमान (जातवेदाः) उत्पन्न वस्तुओं के ज्ञान करानेवाले परमेश्वर ने (अहानि) दिनों को (अनु) निरन्तर (अख्यत्) प्रसिद्ध किया है। (सूर्यः) [उसी] सूर्य [सब में व्यापक वा सबको चलानेवाले परमेश्वर] ने (उषसः) उषाओं में (अनु) लगातार, (रश्मीन्) व्यापक किरणों में (अनु) लगातार, (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी में (अनु) लगातार (आ विवेश) प्रवेश किया है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जिस परमेश्वर ने सूक्ष्म और स्थूल पदार्थों को रच कर सबको अपने वश में कर रक्खा है, वही सब मनुष्य का उपास्य है ॥४॥
टिप्पणी: ४−(अनु) निरन्तरम् (अग्निः) सर्वव्यापक ईश्वरः (उषसाम्) प्रभातवेलानाम् (अग्रम्) प्रादुर्भावम् (अख्यत्) ख्यातेर्लुङ्। अ० ७।७३।६। प्रख्यातवान् (अनु) (अहानि) दिनानि (प्रथमः) प्रथमानः (जातवेदाः) अ० १।७।२। जातानि वस्तूनि वेदयति ज्ञापयतीति सः (अनु) (सूर्यः) सर्वव्यापकः। सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (उषसः) प्रभातकालान् (रश्मीन्) अ० २।३२।१। व्यापकान् किरणान् (अनु) (द्यावापृथिवी) सूर्यभूलोकौ (आ विवेश) समन्तात् प्रविष्टवान् ॥