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प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ रू॒पाणि॑ परि॒भूर्ज॑जान। यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रजाऽपते । न । त्वत् । एतानि । अन्य: । विश्वा । रूपाणि । परिऽभू: । जजान । यत्ऽकामा: । ते । जुहुम: । तत् । न: । अस्तु । वयम् । स्याम । पतय: । रयीणाम् ॥८५.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:7» सूक्त:80» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ईश्वर के गुणों का उपदेश

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रजापते) हे प्रजापालक परमेश्वर ! (त्वत्) तुझ से (अन्यः) दूसरे किसी ने (परिभूः) व्यापक होकर (एतानि) इन (विश्वा) सब (रूपाणि) रूपवाले [आकारवाले] पदार्थों को (न) नहीं (जजान) उत्पन्न किया है। (यत्कामाः) जिस वस्तु की कामनावाले हम (ते) तेरा (जुहुमः) स्वीकार करते हैं, (तत्) वह (नः) हमारे लिये (अस्तु) होवे, (वयम्) हम (रयीणाम्) अनेक धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) बने रहें ॥३॥
भावार्थभाषाः - यह मन्त्र अ० ७।७९।४। में आ चुका है, (अमावास्ये) के स्थान पर यहाँ (प्रजापते) पद है, भावार्थ समान है ॥३॥
टिप्पणी: ३−(प्रजापते) हे प्रजापालक। अन्यद्गतम्-अ० ७।७९।४ ॥