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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शारीरिक और मानसिक रोग हटाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (त्वाष्ट्रेण) सबके बनानेवाले परमेश्वर के (वचसा) वचन से (अहम्) मैंने (ते) तेरी (ईर्ष्याम्) ईर्ष्या को (वि अमीमदम्) मदरहित कर दिया है (अथो) और (पते) हे स्वामिन् ! [परमेश्वर !] (यः) जो (ते) तेरा (मन्युः) क्रोध है, (ते) तेरे (तम्) उसको (उ) अवश्य (शमयामसि) हम शान्त करते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे वैद्य द्वारा शारीरिक रोगों की चिकित्सा की जाती है, वैसे ही वेदादि शास्त्रों द्वारा मानसिक रोगों की निवृत्ति करनी चाहिये, जिससे परमेश्वर कभी क्रोध न करे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(त्वाष्ट्रेण) अ० २।५।६। त्वष्टृ-अण्। सर्वनिर्मातुः परमेश्वरस्य सम्बन्धिना (अहम्) जीवः (वचसा) वचनेन (ते) तव (ईर्ष्याम्) अ० ६।१८।१। परसम्पत्त्यसहनम्। मत्सरम् (वि अमीमदम्) विगतमदां कृतवानस्मि (अथो) अपि च (यः) (मन्युः) क्रोधः (ते) तव (पते) स्वामिन् ! परमेश्वर (तम्) (उ) अवधारणे (ते) (शमयामसि) शमयामः। शान्तं कुर्मः ॥