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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
विज्ञान की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) यह [परमेश्वर] (नः कवीनाम् सहस्रम्) हम सहस्र बुद्धिमानों में (आ) व्यापकर (दृशे) दर्शन के लिये (विधर्मणि) विरुद्धधर्मी [पञ्चभूतरचित स्थूल जगत्] में (मतिः) ज्ञानस्वरूप और (ज्योतिः) ज्योतिःस्वरूप है ॥१॥
भावार्थभाषाः - पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश से बने संसार में परमात्मा की महिमा निहार कर विद्वान् लोग विज्ञान, शिल्प आदि के नये-नये आविष्कार करते हैं ॥१॥
टिप्पणी: १−(अयम्) सर्वत्रानुभूयमानः परमेश्वरः (आ) व्याप्य (नः) अस्माकम् (दृशे) दृशे विख्ये च। पा० ३।४।११। इति दृशिर्-के। दर्शनाय (कवीनाम्) मेधाविनाम् (मतिः) चित्स्वरूपः (ज्योतिः) प्रकाशरूपः (विधर्मणि) विरुद्धधर्मवति पञ्चभूतनिर्मिते जगति ॥