धा॒ता रा॒तिः स॑वि॒तेदं जु॑षन्तां प्र॒जाप॑तिर्नि॒धिप॑तिर्नो अ॒ग्निः। त्वष्टा॒ विष्णुः॑ प्र॒जया॑ संररा॒णो यज॑मानाय॒ द्रवि॑णं दधातु ॥
पद पाठ
धाता । राति: । सविता । इदम् । जुषन्ताम् । प्रजाऽपति: । निधिऽपति: । न: । अग्नि: । त्वष्टा । विष्णु: । प्रऽजया । सम्ऽरराण । यजमानाय । द्रविणम् । दधातु ॥१८.४॥
अथर्ववेद » काण्ड:7» सूक्त:17» पर्यायः:0» मन्त्र:4
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
गृहस्थ के कर्म का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सविता) सर्वप्रेरक, (धाता) धारण करनेवाला, (रातिः) दानाध्यक्ष, (प्रजापतिः) प्रजापालक, (निधिपतिः) निधिपति [कोशाध्यक्ष] और (अग्निः) अग्निसमान [अविद्यारूपी अन्धकार का नाश करनेवाला] विद्वान् पुरुष [यह सब अधिकारी] (नः) हमारे (इदम्) इस [गृहस्थ कर्म] को (जुषन्ताम्) सेवन करें। (विष्णुः) सर्वव्यापक, (संरराणः) सम्यक् दाता, (त्वष्टा) निर्माता परमेश्वर (प्रजया) प्रजा के सहित वर्तमान (यजमानाय) पदार्थों के संयोजक-वियोजक विज्ञानी को (द्रविणम्) बल वा धन (दधातु) देवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा राज्य की उन्नति के लिये अनेक अधिकारी रखता है, वैसे ही गृहस्थ लोग घर का प्रबन्ध करके परमेश्वर के अनुग्रह से बल और धन बढ़ावें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० ८।१७ ॥
टिप्पणी: ४−(धाता) धारकः (रातिः) कर्तरि क्तिच्। दानाध्यक्षः (सविता) नायकः (इदम्) दृश्यमानं गृहस्थकर्म (प्रजापतिः) प्रजापालकः (निधिपतिः) कोशाध्यक्षः (नः) अस्माकम् (अग्निः) अग्नितुल्योऽविद्यान्धकार-दाहको विद्वान् (त्वष्टा) अ० २।५।६। सृष्टिकर्त्ता (विष्णुः) सर्वव्यापकः (प्रजया) (संरराणः) अ० २।३४।३। सम्यग् दाता (यजमानाय) पदार्थानां संयोजकवियोजकविज्ञानिने (द्रविणम्) बलं धनं वा (दधातु) ददातु ॥