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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
गृहस्थ के कर्म का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ईशानः) ऐश्वर्यवान् (जगतः पतिः) जगत् का पालनेवाला, (धाता) धाता विधाता [सृष्टिकर्ता] (नः) हमें (रयिम्) धन (दधातु) देवे। (सः) वही (नः) हमको (पूर्णेन) पूर्ण बल से (यच्छतु) ऊँचा करे ॥१॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ लोग जगत्पति परमात्मा के अनुग्रह से प्रयत्न करके धन और बल बढ़ाकर सुखी रहें ॥१॥
टिप्पणी: १−(धाता) सर्वस्य विधाता-निरु० ११।१०। सृष्टिकर्ता (दधातु) ददातु (नः) अस्मभ्यम् (रयिम्) धनम् (ईशानः) ईश्वरः (जगतः) (पतिः) पालकः (सः) धाता (नः) अस्मान् (पूर्णेन) समस्तेन बलेन (यच्छतु) यम-लोट्। उद्यच्छतु। उन्नयतु ॥