बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राक्षसों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे शत्रु !] (अहम्) मैंने (ते) तेरी (वक्षणाभ्यः) छाती के अवयवों से [बल को] (आ ददे) ले लिया है, (ते) तेरे (हृदयात्) हृदय से (आ ददे) ले लिया है। (आ) और (ते) तेरे (मुखस्य) मुख के (संकाशात्) आकार से (ते) तेरे (सर्वम्) सब (वर्चः) ज्योति वा बल को (आ ददे) ले लिया है ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य अधार्मिक दोषों और शत्रुओं को नाश करें ॥१॥
टिप्पणी: १−(ते) तव (आ ददे) लिटि रूपम्। गृहीतवानस्मि (वक्षणाभ्यः) अ० २।५।५। वक्ष रोधे-युच्। टाप्। वक्षःस्थलेभ्यः (ते) (अहम्) (हृदयात्) (आ ददे) (आ) चार्थे (ते) (मुखस्य) (संकाशात्) आकारात् (सर्वम्) (ते) तव (वर्चः) तेजो बलं वा (आ ददे) ॥