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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
विद्वानों के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे परमेश्वर !] तू (ओषधीनाम्) ताप रखनेवाले [सूर्य आदि] लोकों का (गर्भः) स्तुतियोग्य आधार (उत) और (हिमवताम्) शीतस्पर्शवाली [जल मेघ आदि] का (गर्भः) ग्रहण करनेवाला और (विश्वस्य) सब (भूतस्य) प्राणिसमूह का (गर्भः) आधार (असि) है। (मे) मेरे लिये (इमम्) इस [संसार] को (अगदम्) नीरोग (कृधि) तू कर ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परमेश्वर के उत्पन्न पदार्थों का गुण जान कर प्रयोग करते हैं, वे संसार में सुख भोगते हैं ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है−अ० २५।५।७ ॥
टिप्पणी: ३−(गर्भः) अ० ३।१०।१२। गरणीयः। स्तुत्यः। ग्रहीता। आधारः। (ओषधीनाम्) अ० १।२३।१। ओष+डुधाञ् धारणपोषणायोः−कि। ओषस्य तापस्य धारकाणां सूर्यादिलोकानाम् (हिमवताम्) शीतस्पर्शवतां जलमेघादीनाम् (उत) अपि च (भूतस्य) प्राणिजातस्य (इमम्) दृश्यमानं संसारम् (अगदम्) अ० ४।१७।८। नीरोगम् (कृधि) कुरु। अन्यद् गतम्−अ० ५।२५।७ ॥