अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑। मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥
पद पाठ
अहम् । गृभ्णामि । मनसा । मनांसि । मम । चित्तम् । अनु । चित्तेभि: । आ । इत । मम । वशेषु । हृदयानि। व: । कृणोमि । मम । यातम् । अनुऽवर्त्मान: । आ । इत ॥९४.२॥
अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:94» पर्यायः:0» मन्त्र:2
बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शान्ति करने के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं (मनसा) अपने मन से (मनांसि) तुम्हारे मनों को (गृभ्णामि=गृह्णामि) थामता हूँ (मम) मेरे (चित्तम् अनु) चित्त के पीछे-पीछे (चित्तेभि=चित्तैः) अपने चित्तों से (आ इत) आओ। (मम वशेषु) अपने वश में (वः हृदयानि) तुम्हारे हृदयों को (कृणोमि) मैं करता हूँ, (मम यातम्) मेरी चाल पर (अनुवर्त्मानः) मार्ग चलते हुए (आ इत) यहाँ आओ ॥२॥
भावार्थभाषाः - प्रधान पुरुष अपने शुभ विचार और साहस से सब सभासदों और प्रजागणों को धर्मपथ पर चलाकर परस्पर मेल के साथ साहसी और उत्साही बनावें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।६ ॥
टिप्पणी: २−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।६ ॥