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सं वो॒ मनां॑सि॒ सं व्र॒ता समाकू॑तीर्नमामसि। अ॒मी ये विव्र॑ता॒ स्थन॒ तान्वः॒ सं न॑मयामसि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम् । व: । मनांसि । सम् । व्रता । सम् । आऽकूती: । नमामसि । अमी इति । ये । विऽव्रता: । स्थन । तान् । व: । सम् । नमयामसि ॥९४.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:94» पर्यायः:0» मन्त्र:1


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

शान्ति करने के लिये उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्यो !] (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (सम्) ठीक रीति से, (व्रता=व्रतानि) कर्मों को (सम्) ठीक रीति से (आकूतीः) संकल्प को (सम्) ठीक रीति से (नमामसि=०−मः) हम झुकते हैं। (अमी ये) यह जो तुम (विव्रताः) विरुद्धकर्मी (स्थन) हो, (तान् वः) उन तुमको (सम्) ठीक रीति से (नमयामसि=०−मः) हम झुकाते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - प्रधान पुरुष सब के उत्तम विचारों, उत्तम कर्मों और उत्तम मनोरथों का माने और धर्मपथ में विरुद्ध मतवालों को भी सहमत कर लेवे ॥१॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।५ ॥
टिप्पणी: १−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।५ ॥