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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) प्रतापी, (मित्रस्य) स्नेही (च) और (वरुणस्य) सेवनीय पुरुष के (वचसा) वचन से और (सर्वेषाम्) सब (देवानाम्) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों के (वाचा) वचन से (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (वयम्) हम लोग (वारयामहे) हटाते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वानों से शिक्षा पाकर वैद्य रोगों की निवृत्ति करता है, इसी प्रकार मनुष्य अपने दोषों की निवृत्ति करें ॥२॥
टिप्पणी: २−(इन्द्रस्य) प्रतापिनः पुरुषस्य (वचसा) वचनेन। उपदेशेन (वयम्) पुरुषार्थिनः (मित्रस्य) स्नेहिनः (वरुणस्य) वरणीयस्य। सेवनीयस्य (च) (देवानाम्) व्यवहारिणां विदुषाम् (सर्वेषाम्) समस्तानाम् (वाचा) वचनेन (यक्ष्मम्) राजरोगम् (ते) तव (वारयामहे) निवारयामः ॥