वांछित मन्त्र चुनें

अ॑य॒स्मये॑ द्रुप॒दे बे॑धिष इ॒हाभिहि॑तो मृ॒त्युभि॒र्ये स॒हस्र॑म्। य॒मेन॒ त्वं पि॒तृभिः॑ संविदा॒न उ॑त्त॒मं नाक॒मधि॑ रोहये॒मम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अयस्मये । द्रुऽपदे । बेधिषे । इह । अभिऽहित: । मृत्युऽभि: । ये । सहस्रम् । यमेन । त्वम् । पितृऽभि: । सम्ऽविदान: । उत्ऽतमम् । नाकम् । अधि । रोहय । इमम् ॥८४.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:84» पर्यायः:0» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पाप से मुक्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (इह) यहाँ पर (मृत्युभिः) मृत्यु के कारणों से (ये) जो (सहस्रम्) सहस्र प्रकार है (अभिहितः) घिरा हुआ तू (अयस्मये) लोहे से जकड़े हुए (द्रुपदे) काठ के बन्धन में (वेधिषे=बध्यसे) बँध रहा है। (यमेन) नियम से (पितृभिः) पालन करनेवाले ज्ञानियों से (संविदानः) मिला हुआ (त्वम्) तू (इमम्) इस पुरुष को (उत्तमम्) उत्तम (नाकम्) आनन्द में (अधि रोहय) ऊपर चढ़ा ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पापों के कारण बड़े-बड़े कष्ट उठाते हैं, वे विद्वानों से ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पद प्राप्त करें ॥४॥ यह मन्त्र अ० ६।६३।३। में आ चुका है ॥
टिप्पणी: ४−(अयस्मये द्रुपदे) इत्येषा व्याख्याता−अ० ६।६३−३ ॥