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त्वं नो॒ नभ॑सस्पत॒ ऊर्जं॑ गृ॒हेषु॑ धारय। आ पु॒ष्टमे॒त्वा वसु॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । न: । नभस: । पते । ऊर्जम् । गृहेषु । धारय । आ । पुष्टम् । एतु । आ । वसु ॥७९.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:79» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सर्वसम्पत्ति पाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (नभसस्पते) हे सूर्यलोक के स्वामी ! (त्वम्) तू (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (ऊर्जम्) बल बढ़ानेवाला अन्न (धारय) धारण कर। (पुष्टम्) पुष्टि (आ) और (वसु) धन (आ एतु) चला आवे ॥२॥
भावार्थभाषाः - सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके जो मनुष्य सूर्य की वृष्टि ताप आदि से उपकार लेते हैं, वे ही सब प्रकार की वृद्धि और धन प्राप्त करते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(त्वम्) (नः) अस्माकम् (नभसस्पते) हे सूर्यलोकस्य पालक (ऊर्जम्) बलकरमन्नम् (गृहेषु) (धारय) स्थापय (आ) चार्थे (पुष्टम्) पुष्टिम्। वृद्धिम् (ऐतु) आगच्छतु (वसु) धनम् ॥