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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
शत्रु के हटाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहा) शत्रुओं वा अन्धकार का नाश करनेवाला (इन्द्रः) प्रतापी राजा (तम्) चोर को (परमाम्) अतिशय (परावतम्) दूर भूमि में (नुदतु) भेज देवे। (यतः) जहाँ से वह (शश्वतीभ्यः) बहुत (समाभ्यः) बरसों तक (पुनः) फिर (न) न (आयति) आवे ॥२॥
भावार्थभाषाः - राजा दुराचारी लोगों को दूर स्थान में कारागार के भीतर रक्खे ॥२॥
टिप्पणी: २−(परमाम्) अतिशयिताम् (तम्) तर्द हिंसने ड। तर्दकं चोरम् (परावतम्) अ० ३।४।५। दूरगतां भूमिम्। (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (यतः) यस्या दूरभूमेः सकाशात् (न) निषेधे (पुनः) द्वितीयवारम् (आयति) आवर्तते (शश्वतीभ्यः) बहुभ्यः−निघ० ३।१। (समाभ्यः) संवत्सरेभ्यः ॥