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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मुण्डन संस्कार का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (अदितिः) अखण्डित छुरा (श्मश्रु) केश (वपतु) काटे (आपः) जल (वर्चसा) अपनी शोभा से (उन्दन्तु) सींचे। (प्रजापतिः) सन्तान का पालन करनेवाला पिता (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवन के लिये और (चक्षसे) दृष्टि बढ़ाने के लिये (चिकित्सतु) [बालक के] रोग की निवृत्ति करे ॥२॥
भावार्थभाषाः - मुण्डन होने के पश्चात् स्नान करा के यथोचित ओषधि खान-पान आदि द्वारा बालक को प्रसन्न करें। इस संस्कार से बालक की आयु और दृष्टि बढ़ती है ॥२॥
टिप्पणी: २−(अदितिः) अ० २।२८।४। दो अवखण्डने−क्तिन्। अखण्डितस्तीक्ष्णधारश्छुरः (श्मश्रु) अ० ५।१९।१४। श्म शरीरम् श्मश्रु लोम, श्मनि श्रितं भवति। निरु० ३।५। शिरः केशम् (वपतु) मुण्डतु (आपः) जलानि (उन्दन्तु) सिञ्चन्तु स्नानेन (वर्चसा) तेजसा (चिकित्सतु) कित रोगापनयने। भिषज्यतु बालकस्य रोगनिवृत्तिं करोतु (प्रजापतिः) सन्तानपालकः पिता (दीर्घायुत्वाय) चिरकालजीवनाय (चक्षसे) अ० १।५।१। दृष्टिवर्धनाय ॥