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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राज्य की रक्षा के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो शत्रु (सबन्धुः) बन्धुओं सहित (च च) और (असबन्धुः) बिना बन्धुओं के होकर (अस्मान्) हमें (अभिदासति) सतावे। (तम्) उस (सर्वम्) सब को (सुन्वते) तत्त्वमथन करनेवाले (यजमानाय) विद्वानों का सत्कार करनेवाले (मे) मेरे लिये (रन्धयासि) वश में कर ॥३॥
भावार्थभाषाः - धार्मिक पुरुष परमात्मा की आज्ञा मान कर तत्त्वमथन कर के शत्रुओं का नाश करें ॥३॥ इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध अ० ६।१५-२। और उत्तरार्द्ध अ० ६।६।१। में आया है ॥
टिप्पणी: ३−पूर्वार्द्धो व्याख्यातः−अ० ६।१५।२। उत्तरार्द्धः−अ० ६।६।१।